न्यूज़ डेस्क। कभी वृंदावन जाएं तो वंशीवट मंदिर के दर्शन जरूर करें । यहाँ आपको ५ हज़ार साल पुराना देखने मिलेगा, जो भगवान कृष्ण की लीलाओं का प्रतीक है। इसी वृक्ष के नीचे भगवान कृष्ण अपने बाल सखाओं के ४ प्रहर तक गौओं की सेवा करते थे। इस मंदिर में भगवान की जगह उनके सखा श्रीदामा कृष्ण रूप में पूजे जाते हैं । यहाँ आने वाले भक्त भगवान को बांसुरी भेंट के रूप में चढ़ाते हैं। भगवान कृष्ण को देवी सरस्वती ने इसी वृक्ष के नीचे बांसुरी दी थी। इसीलिए इस वृक्ष को वंशीवट कहा जाता है।

कृष्ण लीला का साक्षी यह वृक्ष पूरे मंदिर परिसर पर फैला हुआ है। यहाँ आने वाले भक्त इस वृक्ष के नीचे बैठ कर प्रभु सुमरन कर असीम शांति की अनुभूति करते हैं ।

वंशीवट को लेकर माना जाता है की इसी वृक्ष के नीचे महारास भी हुआ था। भगवान शिव ने श्री कृष्ण के इसी रास में हिस्सा लेने के लिए गोपी का रूप धारण किया था। Iइसीलिए वृंदावन में उनका एक मंदिर गोपेश्वर महादेव के रूप में पूजा जाता है। यहाँ महादेव एक गोपिका के रूप विद्यमान हैं। माना जाता है कि वृंदावन आने वाले लोगों को गोपेश्वर महादेव के दर्शन जरूर करने चाहिए तभी उनका वृंदावन दर्शन पूरा हो पाता है| वृंदावन के लोगों के अनुसार यहां इस विशाल वट वृक्ष के नीचे बैठकर भजन करने से मन्नते पूरी होती हैं । चैतन्य महाप्रभु भी जब सबसे पहले वृंदावन आए तो उन्होंने इसी स्थान के पहले दर्शन किए थे।

