बनासकाठा। गुजरात के बनासकाठा जिले के लखणी गांव में एक ऐसा मंदिर है जहां श्रद्धालु भगवान बालाजी के लिए नारियल तो लेकर जाते हैं, लेकिन इन नारियलों को तोड़ा नहीं जाता। यहां नारियल मंदिर के पीछे भगवान बालाजी के नाम पर चढ़ा दिया जाता है। यहां जठा वाले नारियल ही चढ़ाए जाते हैं। यह परम्परा करीब 700 सालों से चली आ रही है। श्रद्धालुओं की भक्ति ऐसी कि यहां लाखों की संख्या में नारियल का पहाड़-सा बन गया है जिसकी आज तक गिनती भी नहीं हुई है। 700 सालों से कितने नारियल यहां चढ़े हैं यह कह पाना मुश्किल है।

भगवान हनुमान को बालाजी के रूप में पूजे जाने वाले श्रद्धालुओं की माने तो ऐेसे नारियल चढ़ाने से उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। यही नहीं इस नारियल को लोग साक्षात भगवान हनुमान का प्रतीक मानते हैं। कहते हैं कि 7 दशकों से यहां नारियलों से सड़ने-गलने की गंध भी नहीं आती है। आंधी-बारिश में नारियल इसी तरह रखे रहते हैं और इन्हें कुछ भी नहीं होता है, जबकि सामान्य नारियल एक निश्चित दिनों के बाद सड़ जाते हैं और उनसे बदबू आने लगती है। लोग इसे बाला जी यानि उनके हनुमान दादा का चमत्कार मानते हैं।
हर शनिवार तो यहां मेले के जैसा माहौल होता है। दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं की यहां भीड़ लग जाती है।
इस मंदिर से जुड़ी एक लोककथा भी प्रचलित है कि खेजड़ा केे झाड़ के नीचे विराजमान भगवान हनुमान के मंदिर से एक तपस्वी महाराज हरदेव पूरी ने उनके मंदिर का नारियल फोड़कर गांव के बच्चों को बांट दिया था। इसकी वजह से गांव के बच्चे बीमार हो गए थे। तब संत ने भगवान हनुमान को उलाहना देते हुए कहा था कि उनके मंदिर के थोड़े से नारियल खाने से अगर बच्चे बीमार हो गए और उन्हें अपने नारियल इतने प्रिय हैं तो वह मंदिर में नारियल का ढेर लगाकर दिखाए। तब से इस मंदिर में जो आता नारियल ही नहीं तोड़ता। देखते ही देखते यहां नारियल का पहाड़ बन गया।

