News Desk| मरने से पहले अगर आपको भी स्वर्ग देखने की इच्छा हो तो चले आइए उत्राखंड के रूद्रप्रयाग जिले के गौंडार गांव में जहां शिव मदमद्येश्वर रूप में यानि मध्यमहेश्वर के रूप में विराजमान हैं। 3497 मीटर की उंचाई पर स्थित इस शिव मंदिर में भगवान शिव के मध्यभाग यानि उनकी नाभि की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी। पांडवों ने जब कौरवों की हत्या कर उन्हें कुरुक्षेत्र के युद्ध में हराया था तो इस विध्वंसक नरसंहार से शिव काफी क्रोधित हो गए थे। बह्महत्या, भातृहत्या के पापों से मुक्ति पाने पांडव जब काशी गए तो शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और बैल का रूप धारण कर लिया। जब पांडवों ने शिव को बैल के रूप में पहचान लिया तो उनका यह बैल स्वरूपी शरीर पंचकेदार के रूप में इन स्थानों पर स्थापित हो गया।

मध्यमहेश्वर रुद्रप्रयाग जिले में उखीमठ के पास अकटोलीधार या रांसी गाँव से 16-18 किलोमीटर की ट्रेक के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। भगवान शिव का यह लिंग पंचकेदारों में से एक माना जाता है। केदारनाथ, तुंगनाथ, रूद्रनाथ, कल्पेश्वर और मध्यमहेश्वर ये पंचकेदार हैं। मध्यमहेश्वर केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण में स्थित है। यह अभ्यारण हिमालय कस्तूरी मृग के लिए प्रसिद्ध है। पहाड़ों पर ट्रैकिंग कर शिव को पाने की यह यात्रा काफी कठिन मानी जाती हैं पर खूबसूरत इतनी की जैसे आप ने जीते जी स्वर्ग के दर्शन कर लिए हों।



