न्यूज डेस्क। पुरी जिले के रघुराजपुर को एक हैरिटेज विलेज के रूप में जाना जाता है। यहां हर घर में कलाकार मौजूद है और इसका सच्चाई आपको इस गांव में प्रवेश करते ही मिल जाएंगी। यहां कि दिवारें, घर, दुकान, दरवाजे, फाटक, सावर्जनिक स्थल हर एक जगह पर सुंदर चित्रकारी और उड़ीसा की संस्कृति का चित्रण उकेरा गया है।

इस गांव कि खासियत यह है कि यहां के कई कलाकार कोई न कोई नेशनल अवार्ड विजेता है। यहां कि पेंटिंग जिसे पट्टु चित्र कहा जाता है पूरे विश्व में इस चित्र की बनी कलाकृतियों की मांग है। पट्टु यानि पटट् चित्र का इतिहास 5 वीं सदी पुराना है।
कला और संस्कृति का बेजोड़ मेल अगर आपको देखना है तो जगन्नाथ यात्रा के दौरान आप रघुराजपुर गांव का भ्रमण जरूर करें।
कला की ऊँचाइयों से हुई मुलाकात आपके जीवन को एक अलग ही सुकुन के श्रेणी में ले जाएगी। यह गांव तुषार चित्रकला, काष्ठ कला, ताड़पत्रों, कपड़ों पर चित्रकारी और गोबर के खिलौनों के लिए प्रसिद्ध है। इन जटिल पेंटिंग्स का विषय मुख्य रूप से पौराणिक कथाएं ही होती हैं जो इसकी खूबसूरती को और निखार देती हैं।

इसे पुरी जिले का विरासत हस्त शिल्प ग्राम के नाम से भी जाना जाता है। रघुराजपुर गांव अपने गोतिपुआ नृत्य के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसे ओडिशी नृत्य का पूर्ववर्ती नृत्य माना जाता है। सन 2000 में भारत सरकार द्वारा इस ग्राम को शिल्प ग्राम का दर्जा दिया गया था।

12 वीं सदी में चित्रकार ताड़पत्रों, महलों मंदिरों और दीवारों में ये पेटिंग किया करते थे। इन चित्रकलाओं में भागवत, रामायण की कथाएं सहसा आपकों देखेने मिलेंगी। इस गांव में 160 परिवार रहते हैं जिनमें 875 कलाकार हैं। online भी आपको पट्टचित्र की पेंटिग्स खरीदने को मिल जाएंगी।

