न्यूज डेस्क। दिवाली पर झाड़ू और सूप की पूजा की जाती है, क्योंकि धन की देवी लक्ष्मी को सफाई अतिप्रिय है। वह स्वच्छ और व्यवस्थित स्थानों में निवास करती हैं। झाडू को स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है। सूप को दरिद्रता और नकारात्मकता को भगाने का प्रतीक माना जाता है। ये दोनों वस्तुएं घर में समृद्धि, स्वच्छता और सकारात्मक ऊर्जा लाती हैं। इसीलिए माना जाता है कि इनके बिना दिवाली की पूजा अधूरी है।
दिवाली आते ही झाडू और सूप का कारोबार भी काफी बढ़ जाता है। नए-नए झाडू और सूप के डिजाइनों से पूरा बाजार सज जाता हैै। लोग सदियों से दिवाली पर झाडू सूप पीटने और झाडू की पूजा करने की प्रथा करते आ रहे हैं। खास तौर पर उत्तर भारत के राज्यों में हर जगह आप इस प्रथा को देख सकते हैं।
धनतेरस के दिन से ही विशेष रूप से झाडू और नए सूप की खरीदारी की जाती है। इस विधि-विधान से झाडू सूप की पूजा का माता लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है और अलक्ष्मी को दूर भगाया जाता है।
हिन्दू धर्म में शास्त्रों के अनुसार, देवी लक्ष्मी दो बहनें थीं। लक्ष्मी और अलक्ष्मी। लक्ष्मी को जहां धन और समृद्धि का रूप माना जाता है वहीं अलक्ष्मी को दरिद्रता का। साल और महीने भर पुरानी झाडू टूटी-फूटी और लंबे समय से उपयोग लाए जाने के कारण माना जाता है इसमें दरिद्रता यानी अलक्ष्मी का वास हो जाता है। इसीलिए इस दिन नए झाडू की पूजा की जाती है और पुराने झाडू और सूप को पीटकर घर से दूर फेंक दिया जाता है। इस दौरान रात्रि में जब पुराने झाडू को घर से दूर फेंका जाता है तो महिलाएं कहती है, ‘लक्ष्मी घर आओ, अलक्ष्मी दूर जाओ।’
यह परम्परा दिवाली की सुबह ब्रह्म मुहूर्त में की जाती है और इसी दिन घर के पूजा स्थल पर नई झाडू और सूप की पूजा की जाती है।
झाड़ू घर से गंदगी और नकारात्मकता को दूर करती है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
झाड़ू का अपमान करने से मां लक्ष्मी का अपमान होता है, इसलिए इसे पूजनीय माना जाता है।
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