News Desk| दशहरा का त्योहार पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जगह जगह पर कई मंडलियां रावण दहन का आयोजन करती हैं। रावण दहन के बाद आपने अकसर देखा होगा लोग एक दूसरे को सोन पत्ती देकर दशहरे की बधाई देते हैं। साथ ही इस दिन नीलकंठ का दिखना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। दशहरे की इन्हीं छोटी मान्यताओं और रिवाजों के पीछे क्या कारण है आइए, जानते हैं।
दशहरे पर सोनपत्ती का विशेष महत्व है, जिसे कई जगह शमी या आप्टा के पेड़ की पत्तियों के रूप में बांटा जाता है। इसे सोना बांटना भी कहते हैं। यह परंपरा विजय, समृद्धि और आपसी सद्भाव का प्रतीक है।
सोनपत्ती से जुड़ी कथाएं
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि कौत्स ने अपनी शिक्षा पूरी होने गुरु वरण्तु को गुरु-दक्षिणा देने का फैसला किया। गुरु ने कौत्स से 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांगीं। कौत्स ने अयोध्या के राजा रघु से मदद मांगी पर उन्होंने विश्वजीत यज्ञ में अपना सारा धन दान कर दिया था। राजा रघु ने धन के देवता कुबेर से मदद मांगी। देवता कुबेर ने दशहरे के दिन ही आप्टा (शमी) वृक्ष के पत्तों को सोने सिक्कों में बदल दिया जिसे कौत्स ने अपने गुरु और बाकी अयोध्यावासियों में बांट दिया था।यहीं से दशहरे के दिन सोनपत्ती बांटने की परंपरा चल पड़ी।
पांडवों की कहानी
महाभारत के अनुसार, पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अपने शस्त्र शमी के वृक्ष के नीचे छिपाए थे। अज्ञातवास के बाद, विजयादशमी के दिन ही उन्होंने हथियार वापस लिए और पूजा की। इसीलिए शमी के पत्ते को विजय का प्रतीक माना जाता है।
सोनपत्ती का महत्व
ऽ सोन पत्ती बांटने और दान करने से समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।
ऽ विजय का प्रतीक है, किसी कार्य की सफलता के लिए शुभ माना जाता है।
ऽ आपसी प्रेम सदभाव, सम्मान का प्रतीक भी माना जाता है।
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