न्यूज डेस्क। सावन के महीने की षष्ठी तिथि से रक्षाबंधन तक मनाई जाती है भोजली। छत्तीसगढ़ का यह पारंपरिक महोत्सव पूरे राज्य में धूमधाम से मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन जब बहनें नदी और तालाबांे के किनारे भोजली के गीत गाते हुए भोजली विसर्जन करने पहुंचती हैं तो यह विंहगम दृश्य पूरे छत्तीसगढ़ में देखने लायक होता है। इस समृद्ध परंपरा का संबध माताएं, बहनों और बहु, बेटियों से है।
सावन माह की षष्ठी के दिन घरों में जंवारे की तरह भोजली बोई जाती है। सुहागिन महिलाएं एवं कुंवारी कन्याएं बांस की छोटी-छोटी टोकरी में गेहूं, धान, जौ, उड़द की अंकुरित बीज बोती हैं। छत्तीसगढ़ के कुछ स्थानों पर नागपंचमी के दिन अखाड़े से लाये मिट्टी से भोजली बोने की परंपरा है। टोकनी से निकली पत्तियां ही भोजली कहलाती हैं। भोजली 2025, 10 अगस्त को है। यह त्योहार रक्षाबंधन के अगले दिन मनाया जाता है. भोजली छत्तीसगढ़ का एक पारंपरिक उत्सव है जो अच्छी फसल और दोस्ती का प्रतीक है|


भोजली दाई के सेवा

नवविवाहित बेटी भोजली मायके में मनती है जो काफी विशेष होती है। भोजली बोने वाली महिलाएं प्रतिदिन भोजली माता की हल्दी पानी से सेवा करती हंै। रोज पूजा कर भोग भोग लगाया जाता है। जब तक घर में भोजली की पूजा होती है प्रतिदिन भोजली के गीत गाए जाते हैं। भोजली दाई की महिमा और उनके धीरे-धीरे बड़े होने की कई कथाएं सुनाई जाती हैं।


भोजली विसर्जन
भोजली को रक्षाबंधन के दूसरे दिन तालाब, जलाशय, नदी आदि में विसर्जित किया जाता है। बिल्कुल जंवारे की तरह ही भोजली माता यानि जंवारे की टोकरी को सिर पर रखकर महिलाएं गीत गाती हुई तालाब पहुंचती हैं। मिट्टी को धोकर भोजली की पौध को वापस घर लाया जाता है। इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।


भोजली बदना
भोजली की कुछ कलियां बड़ों को समर्पित कर आशीर्वाद लिया जाता है और छोटों को देकर आशीष। भोजली को लड़कियां और सुहागिनंे एक-दूसरे की कानों में खोंच कर मित्रता की कसमें खाती हैं। ऐसी कसमें खाने के बाद अपने मित्र का नाम नहीं लिया जाता हैं। इसे छत्तीसगढ़ में भोजली बदना कहते हैं। मैत्री, स्नेह और परिजनों के बीच प्रेम का संदेश देता यह पर्व बेहद खूबसूरत है।

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By Pooja Patel

प्रोड्यूसर एंड सब एडिटर डेली हिन्दी मिलाप हैदराबाद, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, भास्कर भूमि, राजस्थान पत्रिका में 14 वर्ष का कार्यानुभव

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