समाचार डेस्क- सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग के पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। जिस तरह से शिवालयों में शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है वैसे ही पार्थिव शिवलिंग अर्थात मिट्टी से बने शिवलिंग की विशेष रूप से उपासना की जाति है जिससे सुख,समृद्धि और विशेष फल की प्राप्ति होती है.कहा जाता है कि पार्थिव शिवलिंग की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होने के साथ-साथ शारीरिक व मानसिक कष्टो से भी मुक्ति मिलती है.
पार्थिव शिवलिंग पूजा का पौराणिक महत्व
शास्त्रों और पुराणों में पार्थिव शिवलिंग की पूजा का उल्लेख अनेक प्रसंगों में मिलता है। मान्यता है कि प्रभु श्रीराम ने लंका विजय से पूर्व भगवान शिव की पार्थिव पूजा की थी वही कलियुग में कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने सबसे पहले पार्थिव शिवलिंग की स्थापना कर शिव उपासना की, जिसके बाद यह परंपरा जन-जन में प्रचलित हो गई। लिंग पुराण के अनुसार, शनिदेव ने भी काशी में पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की आराधना की थी जिससे उन्हें अपने पिता सूर्यदेव से अधिक बल प्राप्त हुआ।
पार्थिव शिवलिंग कैसे बनाये
पार्थिव शिवलिंग बनाने के लिए किसी पवित्र स्थान नदी या तालाब के मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। अगर नदी या तालाब जाना संभव न हो तो घर के बगीचे या गमले की मिट्टी लेकर उसे गंगा बालू और गंगा जल से शुद्ध करने के पश्चात पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर सकते है.

पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन
पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन सूर्यास्त के पूर्व किया जाना चाहिए. इसे किसी नदी, तालाब या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत में प्रवाहित कर सकते हैं।अगर आप नदी या तालाब जाने में असमर्थ हैं तो एक बड़े बर्तन में शुद्ध जल लेकर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हुए पार्थिव शिवलिंग को जल में विसर्जित करें. विसर्जन के बाद, जल को तुलसी के पौधे को छोड़कर किसी अन्य पौधे में डाल दें.
