घर के चौखट में लटके नीम के डंगारी, चूल्हा में चिला अउ रोटी के महकई। खेत में हल और औजार मन के पूजा, गेढ़ी चढ़े टूरा मनके लाहो लेवई, इही ताए, ऐ छत्तीसगढ़ तिहार के सुंदरता। अब कोनो नहीं डरे टोन्ही टेनकी के कहानी ले, काबर कि छत्तीसगढ के मनखे मन में अब ज्ञान और विज्ञान के खुशहाली हे। ऐ हमर पहिली तिहार हरियाली ऐ।
न्यूज डेस्क| हरेली अमावस्या से शुरु हो जाता है छत्तीसगढ़ में त्योहारों का सिलसिला। हरियाली से लिपटे इस त्योहार में किसानों औजारों हल, नागर, फावड़ा, गैंती की पूजा की जाती है। इस दिन कृषि कार्य बंद होते हैं। गुड़ से बने गुलगुल, चिला, खुर्मी-ठेठरी जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।

गाय, भैंस, बैल को बीमारियों से बचाने के लिए बगरंडा और नमक (आटा में दवाई मिला के) यादवों द्वारा खिलाया जाता है, ताकि पशुओं को रोगों से बचाया जा सके। इसके साथ ही पशुओं को अच्छे से नहलाया-धुलाया जाता है। बच्चे गेड़ी चढ़ने के साथ इसकी कई गांवों में प्रतियोगिताएं की जाती है। ईश्वर से अच्छी फसल और लोगों के निरोगी रहने की कामना की जाती है।

आने वाले मौसमी बदलावों से होने वाली बीमारियों से परिवार को बचाने के लिए घर-घर नीम की डंडियां लगाई जाती हैं। नीम के औषधि गुणों के बारे में तो हम सभी जानते हैं। यही वजह है कि पूर्वजों ने इसे चौखट में लगाकर इसके औषधि महत्व का संकेत हमें समझाया है। यह हमारी परंपरा के साथ विज्ञान का अटूट संगम भी है।

हरेली के पहले ही किसान अपने खेतों में बुआई और रोपाई कर लेते हैं, क्योंकि मानसून में जलीय, जहरीले जीवों की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे में पानी के अंदर रहकर रोपाई करने से जहरीले जीवों के काटने का डर होता है। इसी कारण यह हरेली से पहले रोपाई कर दी जाती है, क्योंकि धान की फसल यहां सबसे ज्यादा लगाई जाती है जिसे पानी के अंदर घुसकर रोपा जाता है। यही से कीचड से बचने गेड़ी का भी चलन बढ़ा।


बिषकुटनी की परंपरा
हरेली अमावस्या के दिन बिषकुटनी मांगने की परंपरा भी है। यह बिषकुटनी भी विषैले जीवों से दूर रहने प्रथा ही है। इस दिन विभिन्न समुदायों के लोग गांव के घरों को निरोगी रखने के लिए बिषकुटनी मांगने पहुंचते हैं। मछुआरे द्वारा पुरानी परंपरा के अनुसार, घर की चौखट के उपर मछली का छोटा जाल लगाकर बिषकुटनी मांगी जाती है। कहा जाता है कि सांप-बिच्छू जाल की वजह से घर की चौखटों पर नहीं जाते हैं, और जाते हैं तो उसमें फंस जाते हैं। इसलिए इसे लगाया जाता है। वहीं लोहार द्वारा घर की निचली चौखट पर एक कील ठोकी जाती है ताकि घर की चौखट के अंदर यदि कोई छोटे-मोटे जीव जंतुओं का मानसून के दौरान वास हो गया हो तो वह कील और हथौड़े की झनकार से भाग जाएं। यादव समुदाय द्वारा नीम के पत्ते लटकाएं जाते हैं ताकि कीट, मच्छर इसकी कसैली गंध से दूर भाग जाएं। इसके बदले में परिवार द्वारा अनाज जैसे धान, पारंपरिक व्यंजन, तेल, नमक, मिर्ची, पैसे या साक-भाझी के दान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
टोन्ही झूपने की कहानी
हरेली की इस खूबसूरती के साथ कुछ लोगों ने इसे नकारात्मक बातों से भी जोड़ रखा था। माना जाता है कि हरेली अमवास्या पर जादू-टोना करने वाले अपने कार्यों की सिद्धी करते हैं। इस दिन कई गांवों में महिलाओं पर अंधविश्वास के कारण टोन्ही के आरोप लगाए जाते थे। कई महिलाओं को भीड़ द्वारा मार डाला जाता था। आज शिक्षा और विज्ञान की नींव में चल रहे राज्य में ऐसी घटनाएं कदाचित ही सुनाई देती हैं। सरकार की जागरूकता अभियानों के चलते इस तरह की घटनाओं में काफी कमी आई है, लोग ऐसी बातों को अंधविश्वास समझकर अब इस पर ज्यादा विश्वास नहीं करते हैं और हरेली को प्रकृति का प्रेम और आशीर्वाद समझते हैं।
