समाचार डेस्क। हरेली के दिन से ही छत्तीसगढ़ में त्योहारों की शुरुआत होती है। हरेली त्योहार पर गेड़ी चढ़ने की परंपरा बहुत खास और दिलचस्प है। त्योहार आने के सप्ताह भर पहले ही लोग गेड़ी बनाने की तैयारी शुरू कर देते। हरेली की खूबसूरती में गेड़ी का क्या महत्व है इसके बिना हरेली क्यों अधूरी है आइए जानें,
हरेली में गेड़ी चढ़ने का कारण
यह त्योहार सावन महीने में मनाया जाता है। यह पूरा काल झड़ी व मूसलाधार बारिश का होता है। इस दौरान गांव की गली, सड़कें और खेतों की मेड़ कीचड़ और दलदल से भर जाती है। पुराने समय में गांव के लोग खुद को कीचड़ से बचाने के लिए लकड़ियों से बने उंचे गेड़ी का उपयोग करते थे। गेंड़ी की प्रथा यहीं से शुरु हुई थी।
गेड़ी की परंपरा कब प्रारंभ हुई
ऐसी जनश्रुति है कि गेड़ी की परंपरा पांडवों से जुड़ी हुई है। महाभारत काल में जब दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाने का प्रयास किया तो पांडवों ने आग से बचने के लिए बाँस की गेड़ी बनाकर अपने प्राण बचाए थे। तब से गेड़ी की परंपरा प्रारंभ हुई है।

प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक
इस दिन बच्चे गेड़ी चढ़कर गाँव के चारों तरफ घूमते हैं। यह खुशी और हरियाली का प्रतीक माना जाता है। गेड़ी चढ़ने से प्रकृति से जुड़े रहते हैं और परंपराओं को जीवंत रखते हैं।

आत्मविश्वास है गेड़ी
गेड़ी चढ़ना एक तरह का शरीर के लिए व्यायाम है, जो संतुलन को बनाए रखने के लिए आत्मविश्वास और साहस जगता है और शरीर की ताकत को भी बढ़ाता है।

सुख-शांति बनी रहती है
मान्यता है कि हरेली के दिन बच्चों व युवाओं द्वारा गेड़ी चढकर गाँव का चक्कर लगाने से गाँव में सुख-शांति बनी रहती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।

