न्यूज डेस्क। सावन महीना हिंदू धर्म में अत्यन्त ही पवित्र माना गया है। सावन में चारो ओर हरियाली होती है जिसे देखकर मन अनायास ही प्रफुल्लित हो उठता है। सावन में रिमझिम फुहारों के साथ ही तीज त्योहारों का भी आरंभ होता है और तीज त्यौहार को बिना झूले के अधूरा मन गया है। आइए जानते हैं कि सावन के झूले की क्या महत्ता है, और इसे कब, कैसे और क्यों झूला जाता है।
सावन के महीने में झूला झूलना एक पारंपरिक प्रथा है जो धार्मिक और सामाजिक दोनों रूप से महत्वपूर्ण है। यह न केवल प्रकृति के साथ जुड़ाव का प्रतीक है, बल्कि परिवार के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम और खुशी का भी प्रतीक है।

पौराणिक मान्यता है कि सावन में भगवान श्री कृष्ण ने राधा रानी के लिए पेड़ की टहनी पर झूला बांधा था और स्वयं अपने हाथों से राधा रानी को झूला झुलाया था। इसी तरह सावन में भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए झूला डाला था और अपने हाथों से झुलाया था। यही से ही सावन के महीने में झूला झूलने की परंपरा की शुरुआत हुई। महिलाएं 16 श्रृंगार कर प्रेम व भक्ति के गीत गीतों का गायन करते हुए झूले का आनंद लेती हैं।
सावन में झूला झूलने के फायदे
ऽ शरीर और मन स्वस्थ रहता है
ऽ झूला झूलना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। यह रक्त संचार को बेहतर बनाता है और नींद को बेहतर करने में मदद करता है।
ऽ झूला झूलने से सकारात्मकता और खुशी का अनुभव होता है.चाहे वह शिशु हो,जवान हो या बुजुर्ग सभी वर्ग के लोग झूला झूलने को लेकर उत्साहित रहते हैं।
ऽ सावन में झूला झूलने से मानसिक तनाव दूर होता है। साथ ही प्रकृति के बीच झूला झूलने से खुशी की अनुभूति और प्रकृति से जुड़ाव महसूस होता है।
मांसपेशियां होती है मजबूत
एक्सपर्ट के अनुसार, प्रकृति के बीच झूला झूलना फायदेमंद होता है। झूला झूलने के दौरान आपको पैरों के साथ पूरे शरीर में ताकत लगानी होती है। इस तरह की नियमित एक्सरसाइज से मांसपेशियां मजबूत होती है। अन्य अंगों को भी फायदा मिलता है।
सावन में कब लगाएं लड्डू गोपाल का झूला
कई राज्यों में हरियाली तीज से भगवान का झूला सजाते हैं। इसे हिंडोलाउत्सव कहा जाता है। यह उत्सव गुजरात और राजस्थान में मनाया जाता है। ब्रज में हरियाली तीज से छट तक यानि कमरछट् तक झूला झूलाया जाता है। झूले को आम के पत्तों और फूलों से सजाए जाते हैं|

5000 साल पहले हुई थी उत्पत्ति
हिंडोला की उत्पत्ति 5000 साल पहले वृंदावन में हुई थी, जहाँ गोपियों ने भगवान कृष्ण को एक सुसज्जित झूले पर झुलाया था। जिस प्रकार श्री कृष्ण-राधा जी को झूला झूलाते हैं, उसी प्रकार सावन के महीने में भगवान शंकर भी माता पार्वती को झूला झूलाते नजर आते हैं।

स्वर्ण-रजत से 100 किलो का झूला
सावन के महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से पूर्णिमा तिथि तक हिंडोलाउत्सव मनाई जाती है। यह भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं को समर्पित होती है। बांके बिहारी को पहली बार 15 अगस्त 1947 को स्वर्ण-रजत झूले में विराजमान कर उन्हें झुलाया गया था, तभी से यह परंपरा लगातार चली आ रही है। यह झूला कई किलो सोने-चांदी से जड़ा हुआ है। जिसका भार लगभग 100 किलो है।

हिंडोला उत्सव का महत्व
ऽ हिंडोला उत्सव, भगवान कृष्ण और राधा को प्रेम के झूले में झुलाने का उत्सव है, जो भक्ति और आनंद का प्रतीक है।
ऽ यह उत्सव भगवान को प्रसन्न करने और भक्तों को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करने का एक तरीका है।
ऽ हिंडोला उत्सव, प्रकृति और छोटे बच्चों के जीवन में महत्व को दर्शाता है, और इसे धर्म से जोड़कर मनाया जाता है।
ऽ इस उत्सव में भगवान को झूले पर बैठाकर फूलों, पत्तियों, फलों, या मोतियों से सजाया जाता है, और फिर भक्त भजन और आरती करते हुए झूला झुलाते हैं।
