editorial| जी सही कहा ना, क्योंकि आज हर भारतीय के दिमाग में यही गुस्सा है कि कोई तीसरा कौन होता है हमारे देश से जुड़े मुद्दों पर निर्णय लेने वाला!
हम बात भारत-पाक तनातनी की ही कर रहे हैं, जिसमें ट्रंप साहब “कबाब में हड्डी” बनकर यू घूंसे की दोनों देशों को सीज फायर का ऐलान करना पड़ा। युद्ध कोई देश नहीं चाहता, न ही जनता चाहती है कि दो देशों की लड़ाई में उनका जान-माल का नुकसान हो, पर कोई समझाए न समझे और अपनी दुम तेड़ी की तेड़ी रखे तो उसे सबक सीखाना ही पड़ता है। पिछले दस दिन में भारतीय सेना का पराक्रम पूरी दुनिया ने देख लिया है। किसी को बताने की जरुरत नहीं कि हमारे सैन्य पराक्रम दूसरे देशों के “उंची दुकान फीकी पकवान” वाले नहीं है, वो जैसे दिखते हैं वैसा काम भी करते हैं। फिर चाहे वो दो लोग, जो हमारे दुश्मन से भाईचारा निभाने और पीठ पर छुरा भोंकने वाले ही क्यों न हों वह भी मुंह की खाकर गए हैं।
अब जब दुनिया ने देख ही लिया कि भारत पराक्रम में किसी से कम नहीं और उड़ती हवाओं में यह भी खबरें हैं कि भारत ने पाकिस्तान के परमाणु केन्द्रों के भी कुछ क्षेत्रों को नष्ट किया है, तो एक साहब जगह-जगह अपनी वाहवाही करते फिर रहे हैं कि उन्होंने परमाणु युद्ध रूकवा दिया। भारत का दावा है कि पाकिस्तान चाहता था कि सीज फायर हो और उसने अमेरिका के राष्ट्रपति से इसे लेकर बात की थी तब भारत ने इसे माना। न कि किसी परमाणु युद्ध के डर से या किसी देश के राष्ट्रपति के कहने की वजह से। अब साहब को कौन बताए कि वह जो समझ रहे हैं वैसा बिलकुल भी नहीं है। वह तो विश्व यात्रा पर निकल बैठे हैं कि उन्होंने दो देशों का परमाणु युद्ध रूकवा दिये।
धंधे की आग में कभी-कभी नेता सही और गलत का तर्क भी भूल जाते हैं। तभी तो मध्य पूर्व की यात्रा में साहब उन्हीं से मिल बैठे जिनको उनके देश ने कभी शीर्ष आतंकवादी संगठन का प्रमुख घोषित किया था। हम बात साहब जी कि मध्यपूर्व देशों की यात्रा को लेकर कर रहे हैं, जहां वह सीरिया के लीडर अलशरा से मिल बैठे। यह वहीं है, जिन्हें अमेरिका आतंकवादी संगठन हयात तहरीर अलशाम का प्रमुख मानता है और उनके नाम पर उनके देश अमेरिका में एक करोड़ डाॅलर का इनाम भी है।
साहब की कथनी और करनी की भिन्नता तो इसी से दिख जाती है। असल माजरा यह है कि अलशरा, साउदी और कतर जैसे देशों के प्रिय हैं। ऐसे में साउदी प्रिंस सलमान का दबाव और इन मध्यपूर्वी देशों से अच्छे व्यापार की चाह ने साहब को अंधा कर रखा है। इनको अपने व्यापार और डाॅलर के आगे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है। व्यापार की चाह में ट्रंप साहब हर तरीके से शांति दूत बनने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी बस चले तो इस बार नोबेल वह खुद के नाम भी करवा लें।
अब तो वह ईरान को भी इन देशों से समझौता करने का दबाव डाल रहे हैं, नहीं तो वह उसका तेल कारोबार रूकवा देंगे। स्वेज नहर से बिजनेस के लिए वह हूतियों का हमला रोकने की बात कह रहे हैं, ताकि उनका जहाज यहां व्यापार कर सकें, जो कई बार हूतियों के आक्रमण की भेंट चढ़ चुका है। साहब का व्यापार हम आम लोगों से काफी परे हैं, एक तरफ उनके देश में स्थित आईएमएफ पाकिस्तान को एक अरब डाॅलर की मदद कर रही है। तो दूसरी तरफ साउदी अरब से अमेरिका ने 600 बिलियन डाॅलर का सौदा किया है, जो कि पाकिस्तान के फाॅरेन रिजर्व यानि 16 बिलियन डाॅलर का 40 गुना है। साउदी अरब अमेरिका से 124 अरब डाॅलर के सिर्फ हथियार ही खरीदने वाला है।
अब अंदाजा आप ही लगा लीजिए कि पिछले दरवाजे से पाक को मदद के नाम पर कितना मिला और सामने के दरवाजे से व्यापार के नाम पर कितना ले लिया गया। कतर से उन्हें 3400 करोड़ रुपए का प्लेन मिल रहा है। जिसका उनके देश में विरोध हो रहा है, लेकिन साहब मु्फ्त की रेवड़ी नहीं छोड़ना चाहते हैं। रही बात रूस और यूक्रेन के बीच शांति दूत बनने की तो यहां भी व्यापार का ट्रिगर बिलकुल कुशलता से दबाया गया हैं। साहब यूक्रेन को अपनी पिछली मदद की वसूली का वास्ता दे रहे हैं। अब भला खानबदोस जेलेंस्की कहां से लाकर उनके उधार चुकाएंगे। अंतत: जेलेंस्की अपने देश के खनिज संसाधनों की पकड़ देकर इस बात को जैसे-तैसे निपटाने की कोशिश कर रहे हैं।
स्वघोषित शांति दूत बने ट्रंप अपने हथियार बेचने के लिए इन दिनों अरब देशों के दौरे पर हैं जहां सबसे ज्यादा मुनाफा उनका इंतजार कर रहा है। अब भला हथियार बेचकर वह किस तरह की शांति फैलाना चाहते हैं और कट्टर दुश्मन देशों के बीच शांति का उनका अलाप किस करवट बैठेगा, यह तो समय ही बताएगा! मगर साहब की मियाँ मिट्ठू ने भारतीयों को खूब खिजाया है। फिर चाहे वह आम जनता हो, देश की सत्ता और विपक्ष में बैठी पार्टियों के नेता, सबके गले में यह बात हजम नहीं हो रही है कि कोई तीसरा कौन होता है हमारे मामलों में दखल देने वाला!
खबर लिखते तक अब साहब का यूटर्न बयान भी सुर्खियों में है कि जो उन्होंने अमेरिकी सेना को संबोधित करते हुए कहा है। जिसमें वह कह रहे की भारत पाक के बीच उन्होंने मध्यस्तता नहीं की बल्कि दोनों देशों के बीच मैटर सुलझाने में मदद की ।
