न्यूजडेस्क। यूएफओ का मतलब अनआइडेंटीफाइंग फ्लाइंग Object यानी अज्ञात उड़ने वाली वस्तु है। एक ऐसा फ्लाइंग object जिसकी पहचान करना मुश्किल होता है। अक्सर इसे एलियंस के स्पेसशिप या उड़न तश्तरी के नाम से जाना जाता है। तेज रोशनी और अजीब गति के चलते इतिहास से लेकर अब तक यह रहस्यमयी बने हुए हैं। वैज्ञानिक धरती पर उड़ने वाले यूएफओ का मूल कारण अभी तक नहीं तलाश पाए हैं, जबकि इतिहास से जुड़ी कई किताबों और पौराणिक कथाओं में इनका उल्लेख मिलता है। लेकिन वैज्ञानिक तौर पर अभी भी इसकी विस्तृत जानकारी लोगों से परे है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रॉकेटरी के विकास के साथ इनकी जांच शुरू हुई और कुछ शोधकर्ताओं ने इन्हें बाहरी ग्रहों के जीवों (एलियंस) से जोड़ा।
यूएफओ का इतिहास प्राचीन सभ्यताओं से जुड़ा माना जाता है। इतिहास में लोग इन्हें देवताओं या स्वर्गदूतों के यान मानते थे। सुमेरिया और प्राचीन भारतीय ग्रंथों में भी उड़ने वाली वस्तुओं (जैसे विमानों) के वर्णन मिलते हैं, जिन्हें उस समय के लोग देवताओं से जुड़ा मानते थे।
आधुनिक युग में केनेथ अर्नोल्ड नामक पायलट ने 1947 में वाॅशिगटन शहर के आसमान में 9 फ्लाइंग सॉसर को उड़ते हुए देखा था। जिसके बाद रोजवेल घटना (1947) और सरकारों द्वारा प्रोजेक्ट ब्लू बुक जैसी जाँचों ने इस रहस्य को और बढ़ाया, आज भी पेंटागन में इसकी जाँच जारी है, जो विज्ञान, लोककथाओं और सरकारी रहस्यों का एक जटिल मिश्रण है।
2025 में (जनवरी से जून) में 2,000 से ज्यादा यूएफओ देखे जाने की रिपोर्टें दर्ज की गईं, जो पिछले सालों से ज्यादा हैं। इनमें से कई घटनाएँ बाद में ड्रोन या गलत पहचान के रूप में स्पष्ट हुईं। लेकिन ऐसी घटनाएं भी थीं जिनका स्पष्टीकरण अभी तक मिल नहीं पाया है और समझ से परे हैं। खासकर समुद्र तटों के पास यूएफओ की घटनाए। ।
नेशनल यूएफओ रिपोर्टिंग सेंटर के अनुसार, 2025 के पहले छह महीनों में 2,000 से अधिक यूएफओ देखे जाने की सूचना मिली, जो 2024 के इसी समय (1,492) और 2023 के (2,077) से ज्यादा हैं।
भारत में राजस्थान के नागौर में ऐेसी कई अज्ञात चीजें देखी गईं। जिन्हें वैज्ञानिकों ने ड्रोन, गुब्बारे बताया लेकिन कुछ ऐसी भी थीं जिनकी व्याख्या नहीं हो पाई।
महासागरों के पासरू मरीन टेक्नोलॉजी न्यूज के अनुसार, अगस्त 2025 से अब तक तटरेखा के पास भी कई अज्ञात वस्तुओं यूएफओ की घटनाएँ दर्ज की गईं।
भारत में सबसे ज्यादा यूएफओ देखे जाने की खबरें, लद्दाख, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे इलाकों से आती हैं, जिनमें लद्दाख अपनी सीमा सुरक्षा और सेना द्वारा रिपोर्टों के कारण प्रमुख हैं। इसके अलावा, केरल, मुंबई, देहरादून, जोधपुर और ओडिशा (नयागढ़) जैसे स्थानों से भी कई दावे किए गए हैं, हालांकि इनकी पुष्टि नहीं हुई है।
बिहार (मानभूम) (1957) सैकड़ों ग्रामीणों ने एक तश्तरीनुमा वस्तु देखी थी।
केरल (कन्नूर)सेना अधिकारी की पत्नी द्वारा एक यूएफओ की तस्वीर खींची गई थी, जिसे बाद में भ्रम बताया गया था, लेकिन यह घटना काफी चर्चा में रही।
ओडिशा (नयागढ़) (1947) एक ताड़पत्र पर एक यूएफओ के उतरने का चित्र बनाया गया था, जो आजादी से पहले की एक घटना है।
दिल्ली (1951) एक फ्लाइंग क्लब के सदस्यों ने सिगार के आकार की एक लंबी वस्तु देखी थी, जो तेजी से गायब हो गई।



