न्यूज डेस्क। बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाने वाली अक्षय तृतीया कभी न क्षय होने वाला फल देने वाली तिथि होती है। इस दिन भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी, देव कुबेर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव, परशुराम जैसे अवतार लिए थे। इस दिन भगवान शिव ने कुबेर देव को धनपति होने का वरदान दिया था। सूर्य देव या भगवान कृष्ण ने (अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार) पांडवों को अक्षय पात्र दिया था। इस दिन समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति और भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के विवाह की भी मान्यताएं लोगों में मानी जाती है। इसीलिए इस दिन किए गए पुण्य कार्य, दान, जन, जप, तीर्थ स्नान का फल कभी क्षय नहीं होता है।


कलश का करें दान
इस दिन कलश दान का बहुत महत्व होता है। स्कंद पुराण के अनुसार, घड़े का दान करना, प्याऊ बनवाना बहुत शुभ माना गया है। घड़े, कुलहड़, मिश्री, सत्तू, खरबूजा, आम, ककड़ी अन्य ऋतु फल, पंखे, चटाई, सफेद वस्त्र, इत्र, शंख, शक्कर, चना दाल का दान भी श्रेष्ठ माना जाता है।


अक्ती पानी
छत्तीसगढ़ में घर में यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे प्रथम जल यानि अक्ति पानी दी जाती है। अक्षय तृतीया की पहली रात को घड़े में पानी भरकर उसे देवस्थल पर रखा जाता है। फिर इसी पानी को तिल, जौ, कुशा के साथ पूरे परिवार केे लोग मृत आत्मा को पानी देते हैं। बाद में यह पानी घर के पौधों, कुओं और खेत-खलिहान में सौभाग्य प्राप्ति के लिए डाली जाती है। पानी देेने वाली संबंधी पानी देते वक्त किसी से भी बात नहीं करते हैं। पूड़ी-खीर, बड़े का व्यंजन बनाकर चढ़ाया जाता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा पर यह परंपरा अक्षय तृतीया के दिन उत्तराखंड में भी निभाई जाती है।
उत्तर-प्रदेश में अक्षय पूजन करने वाली जगह को गेरु या गोबर से लिपा जाता है। 5 कलश रखें जाते हैं जिसमें से एक मिट्टी का घड़ा कोरा होता है। जिसमें कलावा बांध कर शुद्ध जल से भरा जाता है। चारों कोनों पर चावल का ढेर कर कलश रखा जाता है और  5वां कलश बीच में रखा जाता है जो दान किया जाता है। लक्ष्मी गणेश की स्थापना की जाती है। जिस चीज की खरीदारी की गई हो उसे वहां पर रखा जाता है। भोग आदि लगाकर विधि-विधान से पूजा की जाती है।
माना जाता है कि घड़े के जल में पितृ देवता का वास होता है और पितृ देवता स्वयं भगवान विष्णु हैं और जल कलश को उनका ही रूप माना जाता है।


श्रीखंड-मालपुआ का भोग
अक्षय तृतीया के दिन मीठे का भोग लगाना अतिशुभ माना जाता है। श्रीखंड और मालपुआ को भोग लगाने की भी परंपरा है। माना जाता है कि यह भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। शिवलिंग पर दूध-दही, शहद और बेलपत्र अर्पित कर पूजा करनी चाहिए।


सेंधा नमक की परंपरा
सेंधा नमक खरीदने की भी परंपरा है। माना जाता है कि सेंधा नमक नकारात्मक उर्जा को दूर करती है और इसे भोजन में उपयोग करने से यह शरीर के असंतुलन को संतुलित करती है। सेंधा जीवन में आने वाले रूकावटों को भी दूर करती है।


सोना-चांदी खरीदे
इस दिन खरीदा गया धन कभी क्षय नहीं होता है। इसीलिए सोना-चांदी खरीदने की परंपरा है। कई लोग चांदी का लोटा भी खरीदते हैं। इसे अक्षय पात्र माना जाता है। वर्तमान में सोने की महंगाई को देखते हुए आप पीली सरसों खरीद कर भी इसे तिजोरी में रख सकते हैं। इसे भी सोना के समान शुभ और फल देने वाला माना गया है।


ये न करें
अक्षय तृतीया के दिन भूलकर भी नुकीली चीजें, दूध का दान नहीं करना चाहिए। इसके अलावा सूर्यास्त के बाद पैसों का लेन-देने भी नहीं करना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी अप्रसन्न होती हैं। टूटी-फूटी चीजों का दान भी न करें।
यह करें
सोना खरीदने से तरक्की होती है। फलदार पौधों का रोपण करने से जीवन में क्लेश समाप्त होता है और व्यक्ति प्रगति पथ पर अग्रसर होता है। सौभाग्य में वृद्धि के लिए घर के मुख्यद्वार पर तोरण बांधे।

By Pooja Patel

प्रोड्यूसर एंड सब एडिटर डेली हिन्दी मिलाप हैदराबाद, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, भास्कर भूमि, राजस्थान पत्रिका में 14 वर्ष का कार्यानुभव

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