न्यूज डेस्क। हिमालय की उंची पहाड़ियों में पाया जाने वाला एक विशेष पौधा है, ब्रह्म कमल। साल में एक बार खिलने वाले इस पौधे को रात की रानी भी कहा जाता है, क्योंकि यह रात में खिलता है। इस फूल की उत्त्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई थी जिससे ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए थे।
पौराणिक कथा
इससे जुड़ी एक कथा यह भी है कि जब भगवान शिव ने भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग किया था तो ब्रह्मा जी ने भगवान शिव की मदद करने के लिए गणेश भगवान के सिर पर हाथी का सिर लगाने के लिए ही इसी ब्रह्म कमल की रचना की थी। उत्तराखंड में भगवान गणेश के कटे हुए सिर का मंदिर भी है जिसके उपर पत्थर रूपी ब्रह्म कमल आज भी विद्यमान है।
पुराणों में यह भी कहा गया है कि यह माता नंदा को काफी पसंद है और उन्हे चढ़ाया जाता है। गर्मियों के अंत में या शरद ऋतु की शुरुआत के दौरान इस फूल को खिलते देखा जा सकता है।
सौभाग्य का प्रतीक
साल में एक बार खिलने वाला यह फूल हिन्दू शास्त्रों में सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। कुछ घंटों के लिए खिलने वाले इस फूल का व्यास 8 इंच के करीब होता है। इसका वैज्ञानिक नाम सौसरिया ओबवल्लाटा है। केदारनाथ, बद्रीनाथ और तुंगनाथ मंदिरों विशेष रूप से इसे चढ़ाया जाता है। यह उत्तराखंड का राजपुष्प है।
पुष्प के लिए नर्सरी
आयुर्वेद और तिब्बती चिकित्सा में इसका विशेष स्थान है। ग्लोबल वार्मिंग, प्राकृतिक अतिक्रमण, अत्याधिक कटाई की वजह से हिमालय क्षेत्र में इस पौधें की संख्या घटती जा रही है जो कि काफी चिंतनीय है। उत्तराखंड की राज्य सरकार अपने राजकीय पुष्प को संरक्षित रखने के लिए विशेष अभियान चला रही है। इसके तहत राज्य के चमोली जिले में इस पुष्प के लिए नर्सरी स्थापित की गई है।
