न्यूज डेस्क, देव उठनी एकादशी इस दिन भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं। हर घर में इस दिन भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने व माता तुलसी के विवाह हेतु विशेष तैयारियां की जाती है। अलग-अलग व्यंजन पकाए जाते हैं, साथ ही भगवान को मौसमी फल और सब्जियों का भी भोग लगाया जाता है।
देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को अमरूद,बेर, चना भाजी, लाल भाजी, कोचई, आंवला, सीताफल, सिंघाड़ा, शकरकंद, मुली आदि अर्पित किया जाता है। 4 महीने के योगनिद्रा से जागने के बाद भगवान को शीत ऋतु में आने वाली फलों व सब्जियों का भोग लगाया जाता है।
चावल के आटे का सुपा,हंसिया
देवउठनी के दिन तुलसी चौरा के पास चावल के आटे से बैलगाड़ी,सुपा, चरिहा,हसिया, धान की कोठी का चिन्ह जमीन पर उकेरा जाता है।यह सभी कृषि में उपयोग आने वाली वस्तुएं है जिसकी भगवान से अच्छी फसल के उपज होने पर आभार प्रकट कर पूजा करते है।

गन्ने का मंडप
इस दी तुलसी के विवाह के पर्व पर तुलसी चौरा पर 2 या 4गन्ने का मंडप बनाते है।देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम अवतार और तुलसी माता का विवाह होता है। इस दिन से विवाह और मांगलिक कार्य भी शुरू किए जाते हैं और इस समय किसानों द्वारा गन्ने की फसल भी काटी जाती है इसलिए इस दिन में मिठास और उल्लास के समावेश हेतु भी गन्ने का महत्व होता हैं।

भुर्री तापना
छत्तीसगढ़ में एकादशी की रात को भुर्री तापने की लोक परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के बाद वर्षा ऋतु का समापन और शीत ऋतु का आगमन होता है और सर्दियों में निरोग व बेहतर स्वस्थ के लिए एकादशी के दिन से अलाव जलाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।भुर्री जलाने से पूर्व उक्त स्थान को साफ कर चौकोर आकार की रंगोली बनाई जाती है जो चारों दिशाओं और ग्रहों को प्रतिनिधित्व करता है फिर पुराने बांस की टोकरी को जलाकर सफेद चावल छिड़कते हुए 7 बार परिक्रमा कर आने वाली ठंड में निरोग रहने की कामना की जाती है।
