
न्यूज डेस्क। कार्तिका मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी मनाई जाती है इसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि देवउठनी एकादशी से दो दिन पहले भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर विद्यमान होते हैं। इस पेड़ के नीचे भोजन करने से उनका आशीर्वाद और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस बार आंवला नवमी 30 और 31 दोनों दिन पड़ रही है। लेकिन उदया तिथि में आंवला नवमी की पूजा की जाती है इसलिए 31 अक्टूबर को सुबह 6 बजे से 10 बजे तक आप आंवला नवमी की पूजा कर सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में आंवला नवमी की पूजा सभी जगह पर धूमधाम से मनाई जाती है। यहां रक्षा सूत्र बांधने, भोजन और अभिषेक के साथ एक विशेष परम्परा है कि इस दिन भोजन में लौकी की सब्जी बनाई जाती है। छत्तीसगढ़ के बुजुर्गों के अनुसार, पुराने जमाने में इस पूजा में विशेष रूप से सफेद रखिया चढ़ाया जाता है, इसके अंदर सोने के गहने या सिक्के रखकर विशेष प्रार्थना की जाती है ताकि परिवार आने वाले ठंड के मौसम में खुशहाल और निरोगी रहे। देवी लक्ष्मी की कृपा घर पर बनी रहे। निसंतान को संतान मिले। लेकिन आज के समय में यह परंपरा कदाचित घरों में ही देखने मिलती है। इसके साथ ही ठंड आते ही छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा रखिये की बड़िया बनाने की परम्परा है इन बड़ियों में कीड़े न लगे और बड़ियां स्वास्थ्य वर्धक रहे इसकी कामना भी की जाती है।

सफाई का ध्यान
यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और संतान सुख, सौभाग्य के लिए मनाया जाता है, लेकिन अपनी नासमझी के चलते कुछ लोग इस दौरान अपने दुर्भाग्य को आमंत्रण दे देते हैं। जिसकी वजह है आंवला वृक्ष के नीचे वह पूजा और भोजन तो करते हैं लेकिन सफाई का ख्याल रखना भूल जाते हैं। इसके चलते पूजनीय वृ़क्ष के नीचे गंदगी का अंबार हो जाता है। कुछ माताएं आंवले के पेड़ की टहनियां तोड़ कर पूजा करती है। ऐसा करने के चक्कर में वह पूरे पेड़ को कई जगह से नुकसान पहुंचा देती हैं। पूजा के साथ प्रकृति का दायित्व समझें। गार्डन, घर या अन्य स्थान जहां आंवले के वृक्ष हैं। साफ-सफाई प्रकृति का पूरा ख्याल रखें। दीपक या धूप हवन जलाते वक्त यह देखें की कहीं पेड़ की टहनियों को इससे नुकसान तो नहीं हो रहा है।
विधि विधान
महिलाएँ सुबह स्नान कर तैयार होती हैं और आँवला के पेड़ की पूजा करती हैं। इस वृक्ष में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का वास होता है। पूजा में पेड़ पर जल और कच्चा दूध अर्पित किया जाता है, साथ ही हल्दी, कुमकुम, चावल और मौली (कच्चा सूत) भी चढ़ाई जाती है। पेड़ के तने पर 8, 11 या 108 बार परिक्रमा करते हुए मौली या सूत बांधकर मन्नतें मांगी जाती हैं।
आंवले से बने पकवान
पूजा के बाद, प्रसाद के रूप में आँवले से बने पकवान चढ़ाए जाते हैं। इस दिन आँवले का सेवन करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। पूजा के बाद, परिवार के सदस्य आँवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करते हैं। ऐसा करने से रोगों का नाश होता है और मन को शांति मिलती है।
वैज्ञानिक दृष्टि
आँवले में विटामिन सी होता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। पर्व का यह पहलू आध्यात्मिकता और स्वास्थ्य के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है।
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