रायपुर, दिवाली पर माता लक्ष्मी के आगमन की तैयारियों को लेकर बाजारों में धान की बालियों के आकर्षक व मनमोहक झालर सज चुके है।झालर के बिना दीपावली का त्यौहार अधूरा है क्योंकि लक्ष्मी पूजन के दिन धान की बालियों के झालर की पूजा करके माता लक्ष्मी से सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना कर अच्छी फसल के लिए आभार व्यक्त करते है।
देहरी पर झूलता झालर
धान के झालरों का विधि-विधान से पूजन कर इसे घर की देहरी पर लगाया जाता है।ऐसा माना जाता है कि जब घर की देहरी पर चिड़ियां और पक्षियां धान के दानों को चुगने आती हैं तो वे घर में खुशहाली लेकर आते हैं।

अधपके धन की बालियों का उपयोग
झालर के निर्माण के समय खेतों से अधपके धान की बलियों को पूजा कर लाया जाता उसके पश्चात बालियों को चोटी की तरह गूथकर आकर्षक डिजाइन में तैयार करते हैं।
प्रकृति से जुड़ाव
आज के चकाचौंध भरे जीवन में जहां लोग आर्टिफिशियल झालरों का सजावट के रूप में उपयोग करते है वहीं आज भी ग्रामीण परिवेश में हाथों से बने धान के झालरों का उपयोग कर प्रकृति के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हुए अपनी परंपरा को जीवंत बनाए रखते हैं।
ऐसा माना जाता है कि दशहरे के बाद धान की कटाई शुरू हो जाती है किसान अपनी पहली फसल को माता व पक्षियों को समर्पित करने के लिए ही झालर का निर्माण करते है।इन झालरों की पूजा खासतौर पर लक्ष्मी पूजा,देवउठनी एकादशी और अगहन महीने के बृहस्पतिवार को की जाती है।

