
न्यूज डेस्क। नवरात्रि सनातन धर्म की मातृशक्ति का पर्व है। जिसके आते ही मंदिरों में मां दुर्गा की पूजा आराधना होने लगती है। जागरण, ज्योतिकलश, जंवारा पूजन, नौ दिन उपवास जैसी भावनाओं के साथ लोग मां की पूजा करते हैं। इसी आराधना का एक रूप गरबा है, जो मातृ पूजन का रूप है जो इसके शब्द से व्यक्त होता है, लेकिन विडम्बना है कि आज के फैशन, दिखावा और बाजार ने इसे कुछ और ही समझ लिया है।
डीजे के कानफोड़ म्यूजिक और अतरंगी कपड़ों में झूमता युवा आज गरबा पूजा को मनोरंजन और फैशन बना चुका है।
अब पूजा नहीं यह हुडदंग बन चुका है जहां आयोजक इसे अपनी कमाई का जरिया बना चुके हैं। स्पांसर के नाम पर हजारों विज्ञापन, हजारों में बिकते टिकट से ऐेसे लगता है जैसे यह कोई पूजा नहीं मनोरंजन स्थल हो। बहुत कम ही ऐसे पंडाल या आयोजन होंगे जहां गरबा स्थल पर माता की नौ दिन विधिवत पूजा होती होगी, कलश स्थापना, गरबा स्थापना, नौ ग्रह और गणेश पूजन होता होगा। गरबा के नाम पर रात 3-3 बजे तक की हुडदंगी कौन-सी सभ्यता है यह आयोजकों को सोचना चाहिए! सनातन धर्म के किस शास्त्र में लिखा है कि 3 बजे रात तक गरबा करने वाले युवाओं को मां दुर्गा के पंडाल को 3 बजे खोले रखना चाहिए! किस शास्त्र में लिखा है कि इनके मनोरंजन के लिए किए गए गरबा के बाद देर रात आरती की जाए! यहां आकर कोई रील बना रहा, कोई अपने बैकलेस कपड़े से टैटू दिखा रहा, कोई चुंबन ले रहा। गरबा करने के बाद रात-रात शराब पार्टियां की जा रहीं, होटलों में रात बिताए जा रहे, नशे में धुत होकर कौन-सी भक्ति दिखाई जा रही है!
इस तरह कि अज्ञानता पर सनातनी विद्धान भी क्यों चुप्पी साधे होते हैं, यह समझ से परे हैं! क्यों गरबा आयोजकों और इसमें शामिल होने वाले युवाओं को यह बताना जरूरी नहीं समझा जाता कि गरबा का सनातन धर्म में महत्व क्या है!
चलिए, हमसे ही सुन लीजिए जिस गरबा को आप करते हैं वह जगजननी मां दुर्गा के गर्भ का प्रतीक है जिससे हम सबकी उत्पत्ति हुई है। इसमें बनने वाले सभी 27 छिद्र, 9 ग्रहों और और 27 नक्षत्रों का प्रतीक हैं। इस गरबा के अंदर पूरा ब्रह्मांड विद्ययमान है। जिसके बिना हमारी कल्पना करना भी नामुमकिन है। आदिशक्ति के 9 रूपों की शक्ति इसके अंदर होती है। जिसके चारों ओर भ्रमण कर नृत्य कर मां की आराधना करने से हम संतानों का पोषण होता है।
इसके समक्ष घुमने से गरबा के छिद्रों से निकलने वाला प्रकाश हमारे अंदर पाॅजिटीव एनर्जी लाता हैै और नेगेटिविटी दूर होती है।
लेकिन हुडदंग में रमे युवाओं को क्यों यह नहीं बताया जाता कि गरबा का महत्व क्या है वह तो इसे नौ रातों तक मनोरंजन और लड़कियां पटाने का सम्मेलन मान लेते हैं। युवा लड़कियां फैशन के नाम पर मातृशक्ति की वंदना की जगह बैकलेस कपड़े पहन, टैटू दिखाती और अशलीलता परोसती नजर आती हैं। नौ दिन के आयोजन के लिए युवा इतना खर्च कर बैठते है कि भले ही उनका अकाउंट खाली हो जाए पर गरबा के नौ दिन दिखावा भरपूर होना चाहिए। वो दिन बीत गए जब मां कि पुरानी साड़ियों से ही गरबा की चनिया-चोली बन जाया करती थी और युवक दो कुरतों में नौ दिन गरबा कर लेते थे।
इसके बाद आती है बात गरबा स्थलों पर लगे मेलों की। यहां लगे तमाम तरह के स्टालों की जहां पिज्जा, चाउमीन, मनचुरीयन, एगरोल, छोले-भटूरे, चाट, पानी पूरी में लहसुन-प्याज से बने व्यंजनों के चटकारे लगाए जाते हैं, क्योंकि साहब आयोजन स्थल को स्पांसर कर रहे, इनके लिए तो सात्विकता और देवी पूजा दरकिनार है, क्योंकि पैसों का सवाल है।
कैसे आदिशक्ति ऐसी पूजा को स्वीकार करेंगी! जगजननी की नौ दिन सात्विक मन से हम पूजा भी न कर पाए तो कैसे हमारी नवरात्रि माॅं पसंद आएगी। यह सवाल गंभीर है। पहले गरबा का महत्व समझिए यह नृत्य मातृशक्ति की आराधना है, इसे भक्ति से जोड़िए फैशन और बाजार से नहीं।
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