140 करोड़ देशवासियों के भविष्य को हम दूसरों पर नहीं छोड़ सकते,100 दुखों की एक ही दवाई है, और वो है आत्मनिर्भर भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज गुजरात दौरे पर समुद्र से समृद्धि कार्यक्रम में भाग लिया। इस मौके पर उन्होंने भावनगर से 34,200 करोड़ रुपये से ज्यादा की कई विकास परियोजनाओं की सौगात दी। पीएम भावनगर एयरपोर्ट से रोड शो करते हुए जवाहर ग्राउंड पहुंचे। यहां वे एक जनसभा को संबोधित किया। जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि

साथियों,

आज मैं ऐसे समय में भावनगर आया हूं, जब नवरात्रि का पावन पर्व शुरू होने वाला है। इस बार जीएसटी में कमी की वजह से, बाजारों में रौनक भी और ज्यादा रहने वाली है, और ये उत्सव के इसी माहौल में आज हम समुद्र से समृद्धि का महा उत्सव मना रहे हैं। भावनगर के भाइयों, मुझे माफ करना, मुझे हिन्दी में इसलिए बोलना पड़ रहा है, क्योंकि देशभर के लोग इसमें जुड़े हुए हैं। देशभर के लाखों लोग जब कार्यक्रम में जुड़े हुए हों, तो आपसे क्षमा मांगकर मुझे हिन्दी में ही बात करनी पडेगी।

साथियों,

21वीं सदी का भारत, आज समुद्र को बहुत बड़े अवसर के रूप में देख रहा है। थोड़ी देर पहले, यहां पोर्ट-लेड डेवलपमेंट को गति देने के लिए, हज़ारों करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास और उद्घाटन किया गया है। देश में क्रूज टूरिज्म को प्रमोट करने के लिए आज मुंबई में इंटरनेशनल क्रूज टर्मिनल का भी लोकार्पण किया गया है। भावनगर के, गुजरात के विकास से जुड़े अनेक प्रोजेक्ट्स भी शुरू हुए हैं। मैं सभी देशवासियों को और गुजरात के लोगों को भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों,

140 करोड़ देशवासियों के भविष्य को हम दूसरों पर नहीं छोड़ सकते। हमारे यहां गुजराती में कहते हैं, सौ दुःखो की एक ही दवाई। 100 दुखों की एक ही दवाई है, और वो है आत्मनिर्भर भारत। लेकिन इसके लिए हमें चुनौतियों से टकराना होगा, हमें दूसरे देशों पर अपनी निर्भरता लगातार कम करते जाना होगा।

साथियों,

देश का कितना नकुसान हुआ है, इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण, हमारा शिपिंग सेक्टर है। आप भी जानते हैं कि भारत सदियों से दुनिया की एक बड़ी समुद्री ताकत था, आज से 50 साल पहले तक भी हम भारत में बने जहाजों का उपयोग करते थे। उस दौर में भारत का चालीस प्रतिशत, 40 परसेंट से अधिक इंपोर्ट-एक्सपोर्ट, देश में ही बने जहाज़ों से होता था। कांग्रेस ने भारत में जहाज़ निर्माण पर जोर देने के बजाय, विदेशी जहाज़ों को किराया-भाड़ा देना बेहतर समझा। इससे भारत में शिप-बिल्डिंग इकोसिस्टम ठप हो गया|

साथियों,

देशवासी ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि, आज भारत हर साल छह लाख करोड़ रुपए विदेशी शिपिंग कंपनियों को शिपिंग सर्विसेस के लिए देता है, किराया देता है। ये आज भारत का जितना डिफेंस बजट है, करीब-करीब उतना पैसा किराये में दिया जा रहा है। हमारे पैसों से विदेशों में लाखों नौकरियां बनी हैं। सोचिए, इतने सारे पैसे का, अगर एक छोटा सा हिस्सा भी अगर पहले की सरकारें, अपनी शिपिंग इंडस्ट्री पर लगातीं, तो आज दुनिया हमारे जहाज़ इस्तेमाल कर रही होती|

आत्मनिर्भर होने के अलावा भारत के पास कोई विकल्प नहीं है। 140 करोड़ देशवासियों का एक ही संकल्प होना चाहिए, चिप हो या शिप, हमें भारत में ही बनाने होंगे। इसी सोच के साथ आज भारत का मेरीटाइम सेक्टर भी नेक्स्ट जेनरेशन रिफॉर्म्स करने जा रहा है। हमारी सरकार ने पांच मेरीटाइम कानूनों को नए अवतार में देश के सामने रखा है। इन कानूनों से और इन कानूनों के आने से शिपिंग सेक्टर में, पोर्ट गवर्नेंस में एक बहुत बड़ा बदलाव आएगा।

साथियों,

भारत सदियों से बड़े-बड़े जहाज बनाने में एक्सपर्ट रहा है। बीते दशक में हमने 40 से अधिक शिप्स और पनडुब्बियां, नेवी में इंडक्ट की हैं। इनमें से एक-दो को छोड़ दें, तो ये सब हमने भारत में ही बनाई हैं। हमारे पास सामर्थ्य है, हमारे पास कौशल की कोई कमी नहीं है। बड़े शिप बनाने के लिए जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। 

देश के मैरीटाइम सेक्टर को मजबूती देने के लिए कल भी एक बहुत ऐतिहासिक निर्णय हुआ है। हमने देश की पॉलिसी में एक बड़ा बदलाव किया है। अब सरकार ने बड़े जहाजों को इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में मान्यता दी है। जब किसी सेक्टर को इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में मान्यता मिलती है,  तो उसे बहुत फायदा होता है। अब बड़े शिप बनाने वाली कंपनियों को बैंकों से लोन मिलने में आसानी होगी, उन्हें ब्याज दर में भी छूट मिलेगी, इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग के जितने भी और लाभ होते हैं, वो सारे के सारे इन जहाज बनाने वाली कंपनियों को भी मिलेंगे। सरकार के इस निर्णय से, भारतीय शिपिंग कंपनियों पर पड़ने वाला बोझ कम होगा, उन्हें ग्लोबल कंप्टीशन में आगे आने में मदद मिलेगी।

साथियों, 

भारत को दुनिया की एक बड़ी समुद्री शक्ति बनाने के लिए, तीन और बड़ी स्कीम्स पर भारत सरकार काम कर रही है। इन तीन योजनाओं से शिप बिल्डिंग सेक्टर को आर्थिक मदद मिलने में आसानी होगी, हमारे ship-yards को modern technology अपनाने में मदद होगी, और डिजाइन और क्वालिटी सुधारने में भी बहुत मदद मिलने वाली है। इन पर आने वाले वर्षों में सत्तर हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जाएंगे।

साथियों, 

मुझे याद है, साल 2007 में जब मैं यहां मुख्यमंत्री के रूप में आपकी सेवा कर रहा था, तब शिप-बिल्डिंग के अवसरों को लेकर एक बहुत बड़ा सेमिनार गुजरात ने आयोजित किया था। उसी दौरान ही गुजरात में हमने,  शिप-बिल्डिंग इकोसिस्टम को सपोर्ट दिया था। अब हम देशभर में शिप-बिल्डिंग के लिए व्यापक कदम उठा रहे हैं। यहां मौजूद एक्सपर्ट्स जानते हैं कि Ship-building कोई साधारण इंडस्ट्री नहीं है। Ship-building Industry को पूरी दुनिया में Mother of All Industries कहा जाता है, उद्योगों की जननी कहा जाता है। क्योंकि इसमें सिर्फ एक जहाज़ ही नहीं बनता, उसके साथ जो उद्योग जुड़े होते हैं, उनका विस्तार होता है। स्टील, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, पेंट्स, आईटी सिस्टम, ऐसे अनेक- अनेक उद्योगों को शिपिंग इंडस्ट्री से सपोर्ट मिलता है। इससे छोटे और लघु उद्योगों को, MSMEs को फायदा होता है। रिसर्च बताती है कि shipbuilding में होने वाले हर एक रुपए के निवेश से इकॉनॉमी में लगभग दोगुना निवेश बढ़ता है। और शिपयार्ड में पैदा होने वाली हर एक जॉब, हर एक रोजगार सप्लाई चेन में छह से सात नई नौकरियां बनाती है। मतलब अगर शिप-बिल्डिंग इंडस्ट्री में सौ नौकरियां बनती हैं, तो इससे जुड़े दूसरे सेक्टर्स में 600 से अधिक जॉब्स क्रिएट होती हैं। इतना बड़ा मल्टी-प्लायर इफेक्ट शिप-बिल्डिंग का होता है।

हम शिप बिल्डिंग के जरूरी स्किल सेट्स पर भी फोकस कर रहे हैं। इसमें हमारे ITI काम आएंगी, मेरीटाइम यूनिवर्सिटी का रोल बढ़ेगा। बीते वर्षों में हमने कोस्टल एरिया में नेवी और NCC के तालमेल से नई व्यवस्थाएं बनाई हैं। इन NCC कैडेट्स को नेवी के साथ-साथ कमर्शियल सेक्टर की भूमिकाओं के लिए भी तैयार किया जाएगा।

सोलर सेक्टर में भारत अब अपने लक्ष्यों को चार-चार, पांच-पांच साल पहले हासिल कर रहा है। पोर्ट लेड डेवलपमेंट को लेकर भी 11 साल पहले जो लक्ष्य हमने तय किए थे, भारत उनमें जबरदस्त सफलताएं हासिल कर रहा है। हम देश में, बड़े-बड़े जहाज़ों के लिए बड़े पोर्ट्स बना रहे हैं, सागरमाला जैसी स्कीम्स से पोर्ट्स की कनेक्टिविटी को बढ़ा रहे हैं।

साथियों,

बीते 11 साल में भारत ने अपनी पोर्ट कैपेसिटी दोगुनी कर ली है। 2014 से पहले भारत में शिप टर्न अराउंड टाइम औसतन 2 दिन होता था। अब आज भारत में शिप टर्न अराउंड टाइम एक दिन से भी कम हो गया है। हम देश में नए और बड़े पोर्ट्स का निर्माण भी कर रहे हैं। हाल में ही केरल में, देश का पहला डीप वॉटर कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट शुरु किया है। 75 हजार करोड़ से ज्यादा की लागत से महाराष्ट्र में वाढवण पोर्ट बन रहा है। ये दुनिया के टॉप टेन पोर्ट्स में से एक होगा।

साथियों, 

आज समुद्री रास्ते से होने वाले ट्रेड में भारत का हिस्सा सिर्फ 10 परसेंट है। हमें इसे और बढ़ाना है, हम 2047 तक, दुनिया के समुद्री व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को लगभग तीन गुणा तक बढ़ाना चाहते हैं। और ये हम करके दिखाएंगे।

साथियों,

जैसे-जैसे हमारा समुद्री व्यापार बढ़ रहा है, तो हमारे समुद्री नाविकों यानी सी-फेरर्स, की संख्या भी बढ़ रही है। ये वो मेहनती प्रोफेशनल्स हैं, जो समंदर में जहाज़ चलाते हैं, इंजन और मशीनरी संभालते हैं, लोडिंग-अनलोडिंग का काम देखते हैं। एक दशक पहले हमारे यहां सी-फेरर्स सवा लाख से भी कम थे। लेकिन आज इनकी संख्या तीन लाख के पार पहुंच चुकी है। आज भारत दुनिया के टॉप-3 देशों में आ गया है, जो सबसे ज़्यादा सी-फेरर्स दुनिया को उपलब्ध कराता है, और इससे भारत के नौजवानों को रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। यानी भारत की बढ़ती शिप इंडस्ट्री, दुनिया की ताकत भी बढ़ा रही है। 

साथियों, 

भारत की एक समृद्ध समुद्री विरासत है। हमारे मछुआरे, हमारे प्राचीन पोर्ट सिटी, इस धरोहर के प्रतीक हैं। हमारा ये भावनगर, ये सौराष्ट्र इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है। इस विरासत को हमें भविष्य की पीढ़ी तक पहुंचाना है, दुनिया को हमारा सामर्थ्य दिखाना है। और इसलिए लोथल में हम एक शानदार मैरिटाइम म्यूजियम बना रहे हैं। और ये भी दुनिया का सबसे बड़ा मैरिटाइम म्यूजियम बनेगा। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की तरह ही ये भारत की नई पहचान बनेगा। थोड़ी देर बाद मैं आज वहां भी जा रहा हूं।.

साथियों,

भारत के समुद्र-तट, भारत की समृद्धि के प्रवेश द्वार बनेंगे। मुझे खुशी है कि गुजरात की ये कोस्टलाइन भी, एक बार फिर यहां के लिए वरदान बन रही है। आज ये पूरा क्षेत्र, देश को पोर्ट-लेड डेवलपमेंट का नया रास्ता दिखा रहा है। आज देश में समंदर के रास्ते जितना कार्गो आता है, उसका फोर्टी परसेंट गुजरात के पोर्ट्स हैंडल करते हैं। अब इन पोर्ट्स को डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का भी फायदा मिलने वाला है। इससे देश के दूसरे हिस्सों तक तेज़ी से सामान पहुंचाना आसान होगा। इससे पोर्ट्स की efficiency भी और अधिक बढ़ेगी।

साथियों, 

यहां शिप ब्रेकिंग का भी एक बड़ा इकोसिस्टम बन रहा है। अलंग का शिप ब्रेकिंग यार्ड, इसका शानदार उदाहरण है। इससे भी यहां बड़ी संख्या में नौजवानों को रोजगार मिल रहा है।

हम सब जानते हैं कि विकसित भारत का रास्ता आत्मनिर्भर भारत से होकर जाता है। इसलिए, हमें याद रखना है, हम जो भी खरीदें, वो स्वदेशी हो। हम जो भी बेचें, वो स्वदेशी हो। मैं सभी दुकानदार साथियों से कहूंगा, आप अपनी दुकानों पर एक पोस्टर लगाएं, जिसमें लिखा हो- गर्व से कहो, ये स्वदेशी है। हमारा ये प्रयास हमारे हर उत्सव को तो भारत की समृद्धि का महोत्सव बना देगा। इसी भावना के साथ, आप सभी को नवरात्रि की एक बार फिर से शुभकामनाएं देता हूं!

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#SamudraSeSamriddhi
#PMinGujarat
#NextGenGST

By Pooja Patel

प्रोड्यूसर एंड सब एडिटर डेली हिन्दी मिलाप हैदराबाद, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, भास्कर भूमि, राजस्थान पत्रिका में 14 वर्ष का कार्यानुभव

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