न्यूज डेस्क। पोला त्योहार छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में से एक है। मिट्टी के खेल-खिलौनों, बैलों की जोड़ी की इस त्योहार में प्रमुख रूप से पूजा होती है। हफ्ते भर पहले से ही बाजार सज जाता है। शुक्रवार को दुर्ग, भिलाई, रायपुर में पोला के सामानों की खरीदारी को लेकर लोगों की अच्छी भीड़ देखी गई। विडंबना यह रही कि लोग इस दौरान मिट्टी के खिलौनों के लेकर जमकर मोलभाव करते नजर आए जो एक तरह से इन छोटे कुम्हार व्यापारियों के लिए खुद को ठगा महसूस करने जैसा था।
गणेशोत्सव भी कुछ ही दिनों में आने वाला है। ऐसे में हजारों रुपए की गणपति की मूर्तियां और पंडाल की बिक्री हो रही है। जबकि प्रशासन द्वारा प्रकृति संरक्षण हेतु मिट्टी के गणेश का अभियान भी चलाया जा रहा है। लोग माॅल में ब्रांडेड सामानों में भी जमकर पैसे लुटा देते हैं। वहीं पोला के त्योहार में महज 80 से 150 रुपए जोड़ी के बैल और दस रुपए के चुकिए, 20 से 50 रुपए का पोरा को लेकर लोग दुकानदारों से लड़ते नजर आए। कुछ तो यह कहते दिखे, ‘माटी ताए।’
ये विडम्बना नहीं तो और क्या है कि एक उत्सव के लिए आप हजारों खर्च कर रहे हैं, लेकिन मिट्टी के इन खिलौनों के लिए आप जमकर मोल भाव कर रहे हैं। इन्हें भी बनाने में मेहनत लगती है। साल भर में एक ही बार यह चीजें बिकती हैं। आॅनलाइन ऐसे खिलौने टेराकोटा आर्ट के नाम पर जहां 500 से 1000 रुपए में बिकते हैं। उन्हें आप 10 रुपए में खरीदने के लिए भी इन छोटे दुकानदारों से लड़ते नजर आ रहे हैं। हमारे त्योहार मनाने से कुछ परिवारों का घर चलता है जिसके लिए वह सालभर सपरिवार मेहनत करते हैं तब जाकर ये रंग-बिरंगे जाता-पोरा और बैल बाजारों की रौनक बढ़ाते हैं। इसलिए अपनी संस्कृति को और भी खूबसूरत बनाने के लिए सहयोग का हाथ बढ़ाए। ब्रांडेड से नीचे उतरें और लोकल फाॅर वोकल का नारा अपनाएं। ‘तब हे तो कहलाहि न जी छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया।’

By Pooja Patel

प्रोड्यूसर एंड सब एडिटर डेली हिन्दी मिलाप हैदराबाद, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, भास्कर भूमि, राजस्थान पत्रिका में 14 वर्ष का कार्यानुभव

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