न्यूज डेस्क। भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथी को मनाया जाने वाला त्योहार है हलषष्ठी। जो कमरछट्ठ या ललही छठ, बलराम जयंती के रूप में भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला यह त्योहार संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। माता कमरछट्ठ से संतान की लंबी आयु की कामना के साथ महिलाएं यह व्रत करती हैं। वहीं निसंतान महिलाएं संतान की कामना के लिए इस व्रत को करती है।
इस साल 14 अगस्त को कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथी पड़ रही है। यह 14 अगस्त को सुबह 3 बजे से शुरू होकर अगले दिन 15 अगस्त तक रहेगी। 14 अगस्त को ही 2ण्4 मिनट से 3ण्43 मिनट तक राहुकाल रहेगा। इसलिए इस समय पर पूजा न करें।
कमरछट्ठ के दिन गाय के दूध का सेवन वर्जित होता है। इस दिन भैंस के दूध का उपयोग किया जाता है। वहीं पसहर चावल यानि लाल चावल का व्रतधारी महिलाएं सेवन करती है। हलषष्ठी शब्द से जुड़े इस त्योहार में हल लगे अनाज का सेवन नहीं किया जाता है। इस दिन बाजारों में 6 तरह के पत्तों का साक बिकता है जो बिना किसी हल की जुताई किए उगाई जाता है। 6 तरह के अनाज की टोकरी, महुआ और लाई डाल कर बच्चों, देवताओं, घर के सदस्यों और पशुओं के लिए भाग बनाएं जाते हैं।

महुआ का महत्व
छत्तीसगढ़ में इस त्योहार के एक हफ्ते पहले से ही बाजारों में रौनक दिखाई देने लगती है। कांस के फूल, खम्हार के दातून, महुआ के पत्तों की पतली, बांस की छोटी टोकरी, महुआ पत्तों की पतली से बाजार इन सभी सामानों से बाजार पटा हुआ होता है। इस दिन चढ़ने वाली लाई भी पसहर चावल से बनी होती हैं। इस पूजा में महुआ का विशेष महत्व होता है।

6 लोटा जल
कमरछट्ठ माता की छह कहानियां पढ़ी जाती है। कमरछट्ठ की पूजा में सगरी का विशेष महत्व होता है। इस पूजा के दिन छत्तीसगढ़ के चैक-चाराहों पर हर छोटी दूरी में आपको सड़कों पर सगरी खुदी मिल जाएगी। जिसमें मिटट्ी से पहाड़ और भगवान शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है। पूरी सगरी को कांस के फूलों से सजाया जाता है। जिसका वर्णन कथा में भी आता है। मुहल्ले की महिलाएं एक साथ एकत्रित होकर अपने बच्चे की लंबी आयु के लिए पूजा करती हैं। सगरी को 6 लोटे जल से भरती हैं। उत्तर भारत में दीवारों पर गोबर या गेरू से मां छटी का चित्र बनाकर हलषष्ठी की पूजा की जाती है।

मां के आंचल की थोपी
इस पूजा के बाद मां अपना आंचल, या नए कपड़ों के टुकड़ों से एक पोथी बनाती है, जिसे हल्दी और स्याही से रंगकर कमरछट्ठ पूजा में चढ़ाया जाता है। पूजा के बाद मां अपना आंचल सगरी के जल से भिगाती है और इसी आंचल से पोथी लपेट कर अपने बच्चे के दाहिने कंधे पर 7 बार मारती है। ताकि भगवान शिव-पार्वती, मां कमरछट्ठ और भगवान बलराम का आशीर्वाद हमेशा उनकी संतान पर बना रहे और वह दीर्घायु रहे।
राखी की छोड़ने की परंपरा
उत्तर भारत में मान्यता है कि जिस तरह शुभ मूहूर्त में राखी बांधी जाती है। उसी तरह शुभ मुहूर्त में राखी को छोड़ना भी चाहिए। इस दिन कई भाई अपनी राखी छोड़कर हलषष्ठी की सगरी में इसे विसर्जित करते हैं और अपनी बहन की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। कुछ जगहों पर राखी को एक महीनें तक ही बांधकर रखा जाता है। इसे एक माह से अधिक बांधकर रखना अशुभ माना जाता है।
