समाचार डेस्क- सावन मास में जिस तरह सोमवार भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है उसी तरह मंगलवार को माता पार्वती की आराधना की जाती है. सावन मास के प्रत्येक मंगलवार को विवाहित महिलाये अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व कुवांरी युवतिया कुंडली में मंगल दोष के प्रभाव को कम करने के लिए मंगला गौरी का व्रत करती हैं।
मांगलिक दोष का प्रभाव कम होता है
ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने से विवाह से संबंधित आने वाली बाधाओं को दूर करता है और जीवन में सुख-शांति लाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से कुंडली में मौजूद मंगल दोष का प्रभाव कम होता है, जिससे विवाह में देरी और जीवन में आ रही सभी तरह की मुश्किलें दूर होती हैं।
पौराणिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए यह व्रत रखा था। एक कथा के अनुसार, धर्मपाल नामक एक सेठ था जिसके कोई संतान नहीं थी। ज्योतिषियों ने उसे बताया कि उसकी संतान की आयु कम होगी। उन्होंने सलाह दी कि वह अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से कराए जो मंगला गौरी का व्रत रखती हो। ऐसा करने से उसके पुत्र को दीर्घायु मिलेगी। धर्मपाल ने ऐसा ही किया और उसके पुत्र को दीर्घायु प्राप्त हुई।
अखण्ड सौभाग्य व गृहस्थ की देवी
मंगला गौरी माता पार्वती का ही एक रूप है. इनके मंगल स्वरूप को मंगला गौरी कहा जाता है. देवी मंगला गौरी के स्वरूप का संबंध मंगल ग्रह और स्त्री के अखंड सौभाग्य से है. मंगला गौरी सुहाग और गृहस्थ सुख की देवी मानी जाती हैं. इनकी आराधना से ये सभी सुख प्राप्त होते हैं.
