Editorial| आज बात करेंगे ऑपरेशन सिंदूर को लेकर राजनीतिक गलियारों में छिड़ी महाभारत की। ये तो होना ही था और ये होता आया ही है कि नेता पहले राष्ट्र के नाम पर साथ देंगे फिर बाद में अपनी राजनीति चमकाने इसी मुद्दे को मोहरा बनाएंगे। इन्हें कभी डेलिगेशन नेताओं द्वारा वैश्विक मंच में राष्ट्र के सम्मान से आपत्ति हो जाती है तो कभी ये चाइनीज और भारतीय ड्रोन की क्षमता नापने और भारतीय एआई में काम कर रहे युवाओं की दक्षता पर सवाल उठाने से भी पीछे नहीं हटते। जबकि प्रत्यक्ष को प्रमाण मई के पहले हफ्ते में ही मिल चुका है।
बस कही न कहीं से भारतीय क्षमता और भारतीय संस्कृति को कुल मिलाकर कम आंकना ही इनकी राजनीति का मुद्दा सा बन गया है। चाहे इसमें देश का अपमान हो या बहुजनसंख्यक सनातन वर्ग का।
चलिए फिर विषय पर आते हैं, जब ऑपरेशन सिंदूर लांच हुआ। आतंकवादियों के अड्डे ध्वस्त हुए तो पूरा देश एक साथ था। भारतीय राजनीति के पक्ष-विपक्ष के सभी नेता साथ नजर आए, क्योंकि राष्ट्र की बात थी। भारत ने अपने पराक्रम और सौर्य का जबदस्त उदाहरण पूरे विश्व के समक्ष पेश किया। लेकिन अब जब ऑपरेशन की सफलता के लिए मौजूदा सरकार घर-घर सिंदूर बांट रही है। तो कई नेता इसका विरोध कर रहे हैं। कोई कह रहा अब भारत की नारियां अब फलां जी के नाम का सिंदूर लगाएंगी क्या! एक ज्ञानचंद साहब जी ने तो वन नेशन वन हसबैंड का नारा लगा दिया।
इस नारे के बीच नेता जी भूल गए कि वह अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे शब्दों का उपयोग कर भारत की महिलाओं का अपमान कर रहे हैं। ऐसी अनैतिक और अनर्गल बातों को करने से पहले नेताओं को सनातन धर्म और उसके रिवाजों को समझना जरूरी है, क्योंकि जो नेता ऐसा कहकर मजाक उड़ा रहे हैं, वह कहीं न कहीं विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति को लज्जित कर रहे हैं।
यह समझ नहीं आ रहा है कि किसी को सिंदूर देने में गलत क्या है! सनातन धर्म में तो सिंदूर दान सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। अगर ऐसा होता तो सिंदूर खेला नहीं होता, हल्दी-कुमकुम नहीं होता। माताएं और बहनें एक-दूसरे को सुहाग का सामान नहीं देतीं। तीज में सुहाग की टोकरियां नहीं भरी जातीं। दुकान में दुकानदार सिंदूर नहीं बेचते। बेटी के बिदाई में मां-बाप उसे सुहाग का सामान नहीं देते। यदि किसी विवाहित महिला को सिंदूर का दान करने से कोई किसी का पति बन जाता तो सबसे पहले मंदिरों में पंडितों को रोकते आप, जो नवरात्रि के नौ दिन पूरे होेने के बाद हमारी बहनों के सौभाग्य के लिए उन्हें मां पर चढ़ाई गई श्रृंगार सामग्री का दान करते हैं जिसमें सिंदूर सबसे महत्वपूर्ण होता है, ताकि बहनों पर मां का आशीर्वाद और सौभाग्य बना रहे।
एक बात और जब मंदिर में मां को सिंदूर चढ़ता हैं ना, तो वही सिंदूर एक छोटी से प्लेट में सब बहनों और भाइयों के लिए रखा जाता है। इसी सिंदूर को हमारी और आपकी बहनें, माएं और पत्नियां अपने सौभाग्य की कामना के लिए अपने मस्तक और अपनी चूड़ियों पर लगाती हैं। इतिहास गवाह है कि सैनिक भाई और पति जब दुश्मनों को मारने रण पर निकलता है, तब मस्तक पर बहन और पत्नी टीका लगाकर दान करती हैं सिंदूर। ताकि वो रण पर दुश्मनों का नाश कर सके। बहन की तीज के कपड़े जब मायके से ससुराल जाते हैं तो उसके कपड़े में सुहाग के सामान के साथ एक लाल डिब्बी में होता है यह सिंदूर जो भाई ले जाता है अपनी बहन के लिए। इसे बहन मां पार्वती को अर्पित कर अपने पति के लिए उपवास करती और धारण करती है।
जाहिर है आप सौभाग्य का मतलब भी नहीं समझे होंगे तो आपको यह भी बता दूं कि सौभाग्य यानि विवाहित स्त्री के पति की आयु हमेशा लंबी रहे और वह सदा-सुहागन रहे। अब भी अगर समझ ना आया हो तो सावन का महीना आने वाला है भाई, तीज के झूले लगेंगे, हल्दी-कुमकुम घर-घर बटेंगे तब देख लेना सिंदूर दान का महत्व।
अब बात वर्तमान सरकार की जो सिंदूर दान कर रही है, समझिए इस बात को पहलगाम हमला किस धर्म के नाम पर हुआ था! क्या पूछकर आतंकियों ने महिलाओं के पति को मारा था! यह सिंदूर आपका सौभाग्य है। आपका राष्ट्र सुरक्षित है, आपका सुहाग सुरक्षित है। इसे सुरक्षित रखने वाले उस सरहद पर खड़े आपके भाई हैं और आपके सौभाग्य को बढ़ाने वाली वह भारत माता हैं। यदि भारत माता की बेटियों के सम्मान और सौभाग्य की रक्षा के लिए ऑपरेशन सिंदूर चला और सफल हुआ तो उससे मिला सिंदूर भी सनातनी के लिए मां का प्रसाद ही होना चाहिए। क्या मां भारती मां नहीं हैं, जिससे हर एक विवाहित महिला का सौभाग्य बढ़ेगा। न कि किसी पार्टी को इससे वर्चस्व मिलेगा।
क्यों भारतीय महिला किसी व्यक्ति विशेष के नाम का सिंदूर लगाएगी और आप होते कौन हैं जो भारतीय महिलाओं का इस तरह उपहास उड़ाने वाले! यह सिंदूर को व्यक्ति विशेष राजनीति में डालकर मां भारती का अपमान मत करिए। पहले इसके महत्व को जानिए तब जाकर अपनी दलीलें रखिए। मुझे तो ताजुब्ब होता है कि जब केन्द्र सरकार यह कदम उठा चुकी है तो इसे वह परिभाषित क्यों नहीं कर रही है और क्यों ऐरे गैरे, सनातन और सिंदूर के महत्व का उपहास उड़ा रहे हैं।
हां सिंदूर न लगाने वालियों को इस बात से ऐतराज हो पर जब महत्व समझ आएगा तब वह भी ऐसी बातों को मानने लगेंगी।

By Pooja Patel

प्रोड्यूसर एंड सब एडिटर डेली हिन्दी मिलाप हैदराबाद, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, भास्कर भूमि, राजस्थान पत्रिका में 14 वर्ष का कार्यानुभव

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