डेस्क न्यूज (संपादकीय) | न नाम लूंगी न वाकये की पुनरावृत्ति करूंगी। बस यही कहूंगी कि हम सब दुर्ग वासियों ही नहीं पूरे छत्तीसगढ़ के लिए यह काफी शर्म की बात है। हमारा समाज एक ऐसी गर्त पर जा चुका है, जहां आप, मैं, हम सब सिर्फ शर्म से चूर-चूर हैं।
इसकी वजह ढूंढे तो शायद हमारे पास पड़ा एक इलेक्ट्रानिक राक्षस ही इसका एक बड़ा कारण है। इसने पूरी तरह से हमें अपनी गिरफ्त में रखा हुआ है और इसकी गिरफ्त में घुसे हम लोग शायद अपने जीवन का सबसे बड़ा समय इसी पर बर्बाद कर रहे हैं। हम यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि इस इलेक्ट्रानिक डिवाइस के उपयोग के साथ हमारी और भी क्या-क्या जिम्मेदारियां हैं। बच्चे, युवा ही नहीं हर वर्ग इसमें क्या देख और क्या सीख रहा है यह सभी जानते हैं।
रील के सागर में डूबी हमारी नैतिकता सो चुकी है। काल का भय भी शायद खत्म हो चुका है, तभी तो महाकाल को पूजने वाली इस नगरी में दुर्गा नवमी के दिन ऐसा कुकृत्य हो गया। क्या हम धर्म को केवल नाम के लिए जप रहे हैं! इसका पालन क्या केवल मंदिर तक है, इसके बाद हमारे अंदर का धर्म कहां जा छुपा है! हमारा चरित्र एक नशे की बाॅटल और गांजे की पुड़िया के आगे नतमस्तक हो जाता है। मोबाइल पर हमारे ईश्वर की भक्ति के स्टेटस, केवल स्टेटस सिंबाल ही होते हैं। हमारे अंदर भक्ति उस वक्त कहां चली जाती है, जब चरीत्रिक हनन के लिए हम पोर्न स्टोरी को जवाबदेही ठहराते हैं! क्यों हम यह तय नहीं कर पाते कि हमें ऐसी चीजों से दूर रहना है और हमारा यह धर्म नहीं है! क्यों हमारी मानसिकता मां, स्त्री, बच्ची, बेटी, भाभी, दीदी के लिए सम्मान की श्रेणी को अंतरआत्मा में ढाल नहीं पाती!
शासन-प्रसाशन के आगे नाक रगड़ के तो दुनिया हारी है। ऐसा क्यों होता है! इसका समाधान न निर्भया में मिला न प्रियंका में।
बेटी हमारी है, हमें तय करना है कि हमारा समाज कैसा होना चाहिए, जवाब सिर्फ कैंडल मार्च, आक्रोश, मार-कुटाई, आगजनी और फांसी नहीं हैं। शायद जवाब हर घर के अंदर छुपा शिष्टाचार, नैतिकता और धर्म ही है जो परिवार के हर एक सदस्य के अंदर तक समाहित होना चाहिए। ऐसे कुकृत्य विचार आने से पहले भी अपने अंदर एक भय होना चाहिए। ये भय ऐसा होना चाहिए कि हमारी रूंह कांप जाए तभी इसका सही पालन हो पाएगा। डर हर इंसान में होना चाहिए तभी सही मायनों में सही कर्म के साथ धर्म का पालन होगा, क्योंकि बेटी हमारी है।
