गोवा| भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज गोवा राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में प्राचीन ग्रंथों के साक्ष्य-आधारित सत्यापन, डिजिटलीकरण, अनुवाद और उन्हें आधुनिक संदर्भों में उपयोगी बनाने हेतु अनुसंधान व नवाचार पर बल दिया। उन्होंने कहा, “हम एक अलग प्रकार का राष्ट्र हैं… हम अपनी जड़ों को फिर से खोज रहे हैं और उन्हीं में दृढ़ता से स्थापित हो रहे हैं। मैं वैकल्पिक चिकित्सा पर विशेष बल देता हूँ, क्योंकि भारत इसका जन्मस्थल है। यह आज भी व्यापक रूप से प्रचलित है| हमारे प्राचीन ग्रंथ केवल पुस्तकालयों की अलमारियों के लिए नहीं हैं। ये शाश्वत विचार हैं और इन्हें आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से पुनः जीवित करने की आवश्यकता है।” 

बच्चों को जन्म से ही हमारी सभ्यतागत जानकारी दे

कार्यक्रम के अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “अपने वेदों, उपनिषदों, पुराणों और इतिहास में झांकने का समय आ गया है और हमें हमारे बच्चों को जन्म से ही हमारी सभ्यतागत गहराई की जानकारी देनी चाहिए। आज हम उन महापुरुषों को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं जो ज्ञान के प्रतीक हैं, चरक और सुश्रुत। चरक कुषाण साम्राज्य में राजवैद्य थे और ‘चरक संहिता’ के रचयिता हैं, जो आयुर्वेद का मूल आधार है। वहीं सुश्रुत शल्य चिकित्सा के जनक माने जाते हैं। मुझे उनके समय के शल्य चिकित्सा उपकरणों की चित्रकारी देखने का अवसर मिला| अत्यंत दूरदर्शी सोच थी। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि सुश्रुत धन्वंतरि के शिष्य थे, जो स्वयं एक प्रतिष्ठित आयुर्वेदाचार्य माने जाते हैं। चरक और सुश्रुत का जीवन आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनना चाहिए।

पश्चिम ही प्रगतिशील है, अब चलन से बाहर हो

उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ वर्गों में यह प्रवृत्ति देखी जाती है कि ‘भारतीय या प्राचीन कुछ भी पिछड़ा है’, यह मानसिकता अब आधुनिक भारत में स्वीकार्य नहीं है। दुनिया हमारी प्राचीन प्रणाली की महत्ता को पहचान रही है| समय आ गया है कि हम भी इसे पहचानें। यह धारणा कि केवल पश्चिम ही प्रगतिशील है, अब चलन से बाहर होनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी माना है कि भारत आज संभावनाओं का केंद्र हैउन्होंने आगे कहा, “पश्चिम चकित रह जाएगा यदि हम अपने प्राचीन ज्ञान को और गहराई से समझें। चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि, जीवक (जो बुद्ध के निजी चिकित्सक थे) ऐसे अनेक आयुर्वेदाचार्य हैं। गणित और खगोल विज्ञान में हमारे पास आर्यभट्ट, बौधायन, वराहमिहिर जैसे नाम हैं। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय वराहमिहिर उज्जैन वेधशाला में कार्यरत थे।” 

सैकड़ों साल पहले वैज्ञानिक सोच

उपराष्ट्रपति ने हमारे प्राचीन चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा, “सैकड़ों साल पहले हम 300 से अधिक शल्य क्रियाएं, प्लास्टिक सर्जरी, अस्थि चिकित्सा और यहां तक कि सिजेरियन डिलीवरी भी करते थे। सुश्रुत के लेखन केवल शारीरिक रचना को नहीं दर्शाते, बल्कि वैज्ञानिक सोच, शुद्धता, प्रशिक्षण, स्वच्छता और रोगी देखभाल के उच्च मानकों को भी रेखांकित करते हैं।

By Pooja Patel

प्रोड्यूसर एंड सब एडिटर डेली हिन्दी मिलाप हैदराबाद, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, भास्कर भूमि, राजस्थान पत्रिका में 14 वर्ष का कार्यानुभव

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